हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥ (द्वितीय अध्याय, श्लोक 37) अर्थ : हे अर्जुन तुम अपना कर्म ( युद्ध) करो और अपना पूरा प्रयास करो यदि सफल नहीं Read more…
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63) क्रोध से मनुष्य की बुद्धि का नाश हो जाता है यानी मनुष्य के सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। जब सोचने समझने की शक्ति नही बचती तो Read more…
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